जिसकी लाठी, उसकी भैंस
कहावत तो यह सदा से ही चली आ रही है और यह निरर्थक भी नहीं है । गांव हो या शहर, मानव हो या पशु- हर जगह हमेशा से ही यह कहावत चलती आ रही है कि ' जिसकी लाठी , उसकी भैंस '।
जब तक जिसकी लाठी में दम रहता है वह अपनी करनी में कसर नहीं करता। जिसकी जितनी चली, उसने खूब जोता। एक दिन वह भी आता है कि जब उसकी लाठी में घुन लग जाता है और वह कमजोर पड़ती चली जाती है। तो फिर किसी दूसरे की लाठी में शक्ति आ जाती है और फिर दूसरे की चलने लगती है। प्रकृति का नियम ही कुछ ऐसा है, हमेशा किसी की ना चली। आज किसी की चल रही है तो कल किसी दूसरे की, परसों किसी तीसरे की।
प्रधान रामसिंह की तूती बोल रही थी। पूरे ' मानपुर ' गांव में जो प्रधान जी ने कह दिया वही अटल था। हिम्मत नहीं थी किसी की, जो कोई जरा भी उजर करे। उसकी ऐसी चली कि -
"न बांधी बंधे , न, खोली खुले।"
प्रधान जी चार भाई थे। सबसे बड़े रामसिंह और उनसे छोटा जहान और जहान से छोटा प्रेम और सबसे छोटा कमल था। उनके पिताजी भी दो भाई थे। किसकी हिम्मत थी कि कोई उनके सामने बोल जाए। प्रधान जी के भाई तो हर समय सबको गाली देकर व डांट कर ही बात करते थे। पूरे गांव में उनका रौब गालिब था। घर में छ: आदमी कमाने वाले थे, फिर दूसरों से भी बेगार लेते रहते थे। खेती का काम अच्छा चल रहा था। आर्थिक स्थिति भी ठीक चल रही थी। प्रधान जी तो प्रधानी में ही अच्छा कमा लेते थे। कहीं ग्राम समाज के पेड़ बेच दिये तो कहीं ग्राम समाज की भूमि पर कब्जा कर लिया। ग्राम समाज की भूमि पर लोगों को आवासीय व खेती के पट्टे करके भी मोटी रकम कमायी थी। जिसने ज्यादा मोटी रकम दी उसी को पट्टा कर दिया। कोई भी सामने आकर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
गांव में कहीं भी खड़ंजा नहीं लगा था, सारे गांव में कीचड़ रहती थी। गांव के कुछ लोगों ने प्रधान जी से खड़ंजा लगवाने के लिए निवेदन किया, तो प्रधान जी बोले -
"अरे खड़ंजा तौ भई पईसान तेई लगैगौ ना, अर सरकार खड़ंजा के लईयां अभई पईसा दै ना रही है। तौ फिर गि बताओ, कै खड़ंजा का मैं अपनी भैंसिया बेचकै लगवाय दऊं? जब सरकार पईसा दै देगी, जबई खड़ंजा लगवाय दिंगे। इतने तो गारे-कींच मेंई हैकै चलनौ परैगौ।"
अब प्रधान जी के दिमाग में एक युक्ति आई -
"पैसा तो सरकार से कुछ दिन बाद आएगा ही , क्यों ना उससे पहले गांव में से किसी तरह चंदा इकट्ठा करके खड़ंजा को बनवा दिया जाए ! सरकार से जो पैसा आएगा , उसे अपनी जेब में रखेंगे। कागजों में उसी खड़ंजा को सरकारी पैसे से लगा हुआ दिखाकर कुछ थोड़ा-बहुत पैसा सेक्रेटरी वगैरा को दे देंगे !"
प्रधान रामसिंह ने गांव वालों के समक्ष चंदा इकट्ठा करने का प्रस्ताव रखते हुए कहा -
"देखो भई, जो तुम्हें खड़ंजा पैई चलनौ है, तौ गांव में ते चंदा इकट्ठौ कर ल्यो, फिर हम खड़ंजा लगवाय दिंगे ! नहीं तौ भई गारे कींच मेंई चलनौ परैगौ। "
उसी खड़ंजा को बनवाने के लिए प्रधान जी ने विकास खंड में सरकार से पैसा मंजूर कराने के लिए एक प्रार्थना पत्र भी दे रखा था , जिसका किसी को भी पता नहीं था। चंदा का नाम सुनकर गांव वालों ने कहा -
"खड़ंजा के लैंया तो सरकार पईसा दै रई है। जब सब गाॅमन में दै रई है तौ हमारे गाॅम कू क्यों ना देवैगी? आज ना देवैगी तौ कल देवैगी, आखिर देवैगी तो है ही। जबई लग जाएगौ, तौ फिर हम क्यों अपनौं पईसा दें।"
प्रधान जी ने अपने भाई 'जहान' से कहा -
"अरे जहान, मेरे दिमाग में एक बात आय रई है। ब्हौत अच्छौ पईसा कमायौ जा सके हैं, जो तू एक काम कर ले तौ !"
'जहान ने पूरे जोश में आकर कहा -'
"हां, बताओ भैय्या- मोहै कहा करनौ है? भलौ कोई काम ऐसौ है, जाय तुम बताऔ अर मैं ना कर सकूं। एक बेर मोय बताय द्यो बस तुम।"
"कैसैई भी करकै तू गाम के आदमीन ते या खड़ंजा के लैयां चंदा इकठ्ठौ करबाय लै, उन्हें बतानी है कै भई यूं खड़ंजा लगवानौ है जल्दी ही ! जो मेह बरसन लगौ तौ फिर ना लगैगौ यूं। तौ भैया जल्दी ते रुपया द्यो जो खड़ंजा मेह बरसने ते पहलै ही लग जाए।"
यह सुनकर जहान ने कहा - "भैया इस काम को मैं करवा दूंगा। यह कोई बड़ा काम नहीं है जिसकी तुम इतनी चिंता कर रहे हो।"
"एक बात और बताए दऊं हूं तोय, यू इतनौ आसान काम नाय है, जितनौ तू समझ रह्यौ है। या काम कू उंगरिया टेढ़ी करनी परैगी, सीधी ऊंगरी ते घी नाम लिकरैगौ। जो यूं काम कर दियौ ना तैनै, तौ आगे के काम की मैनै जानी "।
"अरे तो भैया उंगली टेढ़ी कर लेंगे, टेढ़ी उंगली क्या हमें बाहर से मांगकर लानी है। तुम इस काम की जिम्मेदारी हम तीनों भाइयों पर छोड़ दो "।
अगले दिन जहान, कमल और प्रेम को साथ लेकर सबसे पहले कुछ ऐसे लोगों के पास गया, जो उनकी चाटुकारिता करते थे । लल्लू और कन्नू के घर जाकर दोनों को बड़े जोर से गाली देते हुए, डांट कर, जहान ने आवाज लगाई।
जहान को आता हुआ देखकर लल्लू और कन्नू झपट कर उठे और बोले-
"अरे आऔ भैय्या आऔ,, बैठौ। भैया आज एसौ का भयौ , जो इतने रिसिया रहे हो? बैठौ तौ सही, पानी पीओ, ठंडे ह्वै जाओ।"
लल्लू तुरंत ही चिलम भरने के लिए गया और घर पर चाय के लिए बोल आया। अब सारे बैठ कर हुक्का पीने लगे, थोड़ी देर में चाय बन कर आ गई। तब चाय की चुस्की लेते हुए लल्लू ने जहान से पूछा -
" हां भैय्या तौ अब बताओ, का काम है हमारे लाक?"
"अरे यह खड़ंजा नहीं लगवाना है क्या, या ऐसे ही गारे कींच में चलते रहोगे?"
"अरे ना भैय्या, खड़ंजा लग जाए, तौ याते बढ़िया का बात है? यू तौ ब्हौत अच्छी बात है, लगबाऔ भैय्या याहै तौ। बताओ हमें का करनौ है ? जहां तुम क्हौ, वहां चलनै कू तैयार हैं हम ?"
"अरे चलनै की बात तौ पीछै की है। पहलै तौ बात पईसान की है, पईसा को काम तो पईसा तेई चलैगौ ना। पहले तौ तुम अपने- अपने हिस्सा कौ पईसा द्यो, अर फिर श्यामू अर कल्लन के ढिंग चलौ, उनते ल्यो पईसा। बाद में गाम में ते चन्दा इकट्ठौ करबाऔ!"
" ठीक है भैय्या, करेंगे पईसा कौ बंदोबस्त।"
"करंगे ते काम ना चलैगौ। यू खड़ंजा एक महीना में ही लगनौ है! फिर मेह बरसन लगौ तौ पानी भरकै रस्ता में कींच ह्वै जायगी, सो फिर खड़ंजा नाय लगैगौ। तौ या करकै पईसा दैनौ है आज ही।"
लल्लू ने जहान से कहा - ठीक है भैय्या, आज ही देते हैं।
जहान ने पैसा लेकर जेब में रख लिया और काॅपी में उनका नाम लिख लिया। फिर उनको साथ लेकर कल्लन और श्यामू के पास गए, लल्लू ने उनसे कहा -
"अरे श्यामू भैया, प्रधान जी इस रास्ते पर खड़ंजा लगवा रहे हैं। सबसे पांच-पांच सौ रुपए का चंदा इकट्ठा कर रहे हैं। हमने अपने पांच सौ रुपए दे दिए हैं और अब तुम भी अपने पैसे देकर शीघ्र ही गांव में चंदा इकट्ठा करवाने के लिए चलो। खड़ंजा लगने के बाद गांव एकदम स्वर्ग बन जाएगा।"
जहान ने उनके भी कॉपी में नाम लिखे और पैसे लेकर अपनी जेब में रखे और उन्हें साथ लेकर गांव में चंदा इकट्ठा करने के लिए चल दिए। जिसके भी यहां जाते थे, वहीं तीनों भाई रौब के साथ कहते-
प्रधान जी इस रास्ते पर खड़ंजा लगवा रहे हैं। हर घर के हिस्से में पांच सौ रुपए आ रहे हैं। इन लोगों ने तो अपना-अपना पैसा दे दिया है। अब तुम भी जल्दी से अपने-अपने हिस्सा का पैसा दो, ताकि बारिश से पहले ही खड़ंजा लग जाए! कुछ लोगों ने उन्हें कहते ही पैसे दे दिए। वे जानते थे, अगर पैसे देने में आनाकानी करी तो ये लोग गाली-गलौंच करने लगेंगे। फिर अपमान और सहना पड़ेगा। कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने पैसा देने के लिए मना कर दिया। उन लोगों के साथ वे अपने स्वभाव के अनुसार, अपनी दबंगई दिखाते हुए झगड़े पर उतारू हो गए। गाली देते हुए तीनों भाई बोले -
"खड़ंजा तौ अब लगनौ हैई। मत द्यो तुम पईसा, हम अपने ढिंग ते लगबाय दिंगे। देखंगे तुमैं, कैसै खड़ंजा पै हैकै लिकरौगे? तुम्हारी टांगन्नै तोर दिंगे जो खड़ंजा पै पाम बी धर दियौ तौ? आज हम बता कै जाय रए हैं तुम्हें ।"
कुछ सोच-विचार करके, झगड़े से बचने के लिए उन लोगों ने भी दो-चार दिन बाद पैसे दे दिए।
ईंट आ गयीं और खड़ंजा का काम शुरू हो गया । मिट्टी का भराव भी गांव के लोगों से ही अपनी-अपनी गाड़ी बुग्गी के द्वारा करावा दिया। खड़ंजा लगवाते वक्त भी अपनी चलती का खूब लाभ उठाया। अपने घर के सामने अपना चबूतरा बचाने के लिए खड़ंजा को दूसरों की तरफ करवा दिया। खड़ंजा लगता हुआ जब गांव के बाहर आया तो एक तरफ प्रधान जी का खेत था। प्रधान जी ने खड़ंजा को दूसरी तरफ को मोड़ना शुरू करवा दिया। शाम को गांव से बाहर राजमिस्त्री थोड़ी सी दूर तक नाली की ईंट लगाकर चले गए कि अब सुबह काम करेंगे। थोड़ी देर बाद प्रधान जी के छोटे भाई जहान ने आकर, बड़ी निर्भीकता के साथ नाली की ईंटों को दूसरे पक्ष की तरफ और अधिक सरका दिया। ताकि अपने खेत की तरफ ज्यादा जमीन बच जाए। उनके सामने बोले कौन? खड़ंजा दूसरे पक्ष की तरफ को लगवा दिया गया। दूसरे पक्ष के लोग चुपचाप देखते रहे। किसी ने उनके सामने कुछ नहीं बोला और ना ही किसी बाहर वाले ने भी कुछ कहा। अगर यह काम दूसरा पक्ष करता, तो बाहर के लोग भी विरोध करने लगते। "तुम यह काम गलत कर रहे हो" यह कहते हुए तुरंत काम बन्द करा देते।
खड़ंजा गांव वालों के पैसे से ही लग गया। सरकार से जो पैसा मिला उस पैसे की किसी भी गांव वाले को भनक तक नहीं लगने दी और वह सारा पैसा चुपचाप अपनी जेब में रख लिया।
अब लगभग तीस साल बाद सरकार की तरफ से गांव में सीमेंट की सड़क बनाने की योजना आई। सड़क का काम शुरू हो गया। प्रधान जी का खेत, अब परिवार के कई लोगों में बंट चुका था। कुछ लोगों ने तो अपने घर भी बना लिए, दीवार से आगे खड़ंजा तक लगभग पांच-छः फुट चौड़े पक्के चबूतरे भी बना दिए। प्रधान जी तो बूढ़े हो चले थे पर नीति तो उनकी ही चल रही थीं। गांव में सड़क बनते-बनते जब उसी खेत पर आई तो गांव के लोगों ने कहा कि दोनों तरफ खड़ंजा से बाहर एक-एक फुट और बढ़ाकर सड़क बना लो तो रास्ता चौड़ा बन जाएगा। क्योंकि सिजरे के अनुसार रास्ता बहुत चौड़ा है। जबकि इन लोगों के तो पूरे चबूतरे भी रास्ते पर ही बने हुए हैं । अब दोनों तरफ खड़ंजा से एक-एक फुट बढ़ाकर काम शुरू हो गया। प्रधान जी की तरफ थोड़ी दूरी तक नाली ही बनी थी कि काम को तुरंत बंद करवा दिया गया। कहा कि हम खड़ंजा से बाहर नहीं बढ़ने देंगे। दूसरी तरफ एक फुट हटाकर नाली बना दी गई थी। देर शाम जहान आया और गांव के लोगों को गाली देते हुए उसने नाली की ईंटों को उखाड़ कर फेंक दिया। सुबह को पुराने खड़ंजा तक ही पूरी नाली बनवा दी । दूसरे पक्ष की तरफ तो इस बार भी सड़क को एक फुट और बढ़ा दिया गया। दूसरे पक्ष के रामपाल आदि ने कहा कि -
"तुम लोगन्नै तो पहले ते ही खड़ंजा हमारी ओर कू बढ़ाकै लगबा राखौ हौ। अबकै बी एक फुट सड़क हमारी ही ओर कू तौ बढ़ गई अर तुमन्नै अपनी ओर कू बढ़न नाय दई , जबकै तुम्हारे तौ पूरे के पूरे चौतरा रस्ता मेंई बने हुए हैं। अब सड़क ऐसै नाय बनेगी।"
रामपाल तुरंत ही कानूनी कार्रवाई करने के लिए अलीगढ़ जिलाधिकारी ऑफिस चला गया। और जिलाधिकारी महोदय के नाम एक प्रार्थना पत्र लिखा। जिसमें बताया गया कि महोदय, रास्ता संख्या 229 पर सरकार द्वारा सड़क का निर्माण कराया जा रहा है। रास्ते पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है जिसके कारण मौके पर रास्ते की चौड़ाई बहुत कम रह गई है। उसने जिलाधिकारी से निवेदन किया कि निर्माण कार्य को तुरंत बंद कराने व पैमाइश करा कर रास्ते पर हो रहे अतिक्रमण को हटवाने के लिए आदेश जारी करने की कृपा करें। ताकि रास्ता चौड़ा बन सके, जिससे भविष्य में लोगों को कोई परेशानी ना बने।
जिलाधिकारी महोदय ने प्रार्थना पत्र को पढ़ा और तुरंत ही काम को बन्द कराने का पुलिस के लिए और रास्ते की पैमाइश कराकर अतिक्रमण को हटवाने के लिए तहसीलदार को आदेश कर दिए। जिलाधिकारी का आदेश मिलते ही पुलिस ने गांव में जाकर तुरंत सड़क निर्माण कार्य बंद करा दिया। काम बंद होते ही प्रधान पक्ष के लोगों को अपना बड़ा अपमान महसूस हुआ और बौखला कर बोले-
"अब तो नाप बी करबानी जान गए हैं। हम भी तौ देखंगे, कैसै नाप करबाकै हमारे चौतरा अर भीतन्नैं तुड़बाय दंगे।
एक दिन तहसील से राजस्व विभाग की टीम पैमाइश करने के लिए पुलिस बल के साथ गांव में पहुंच गयी। सिजरे के अनुसार पैमाइश करके देखा कि प्रधान जी की तरफ तो सारे चबूतरे और दीवार रास्ते में ही बने हुए हैं। पैमाइश करने के बाद राजस्व विभाग की टीम ने पुलिस की सहायता से दीवार और चबूतरौं को तुडवाना शुरू कर दिया। चबूतरा और दीवार टूटते हुए देखकर उन लोगों ने काफी हंगामा किया। राजस्व विभाग की टीम व मजदूरों के साथ धक्का-मुक्की कर दी। जब पुलिस ने मामला बिगड़ता देखा, तो पुलिस को लाठी फटकारनी पड़ी। सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में पुलिस कई लोगों को गिरफ्तार करके ले गई और उन पर मुकदमा दर्ज कर दिया। जब तक सड़क बनी, पुलिस वहीं पर रही। अब तो सड़क, खड़ंजा से भी दोगुनी चौड़ी बन गई। आज ना लाठी काम आयी और ना ही कोई चालबाजी। बस, सब के सब अंदर ही अंदर कुढते रह गए।